
सोच रही हूँ कि आज खुद को एक ख़त लिखू ,पर मेरा कोई पता नहीं है कहाँ लिखू......
चलो एक काम करते हैं, बहुत उलझाया है ज़िन्दगी ने हमे आज हम इसे परेशान करते हैं,
लिख के खुद को एक ख़त तेरे पते पर भेज दूँगी, तुम रखना उसे सम्भाल के,मिलेंगे जब हम उसी खण्डहर पे तो साथ पढ़ेंगे।
मैं देख के उस ख़त को खुशी से चौंक जाऊँगी, तुम पकड़ के मेरा हाथ साथ बिठा लेना।
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