
पापी पेट हाथों मजबूर थे,
चंद रोटि के लिए मोहताज थे l
2 जून के लिए भटकते रहे इधर-उधर,
काल भी मुझसे ना हुआ कभी पृथक।
कोरोना से बचूं तो रोटी छूट जाए,
ट्रेन पकड़ने जाऊं तो रोटी छूट जाए।
इसी रोटी के लिए
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पापी पेट हाथों मजबूर थे,
चंद रोटि के लिए मोहताज थे l
2 जून के लिए भटकते रहे इधर-उधर,
काल भी मुझसे ना हुआ कभी पृथक।
कोरोना से बचूं तो रोटी छूट जाए,
ट्रेन पकड़ने जाऊं तो रोटी छूट जाए।
इसी रोटी के लिए