![रेत और वक़्त's image](/images/post_og.png)
टहलते हुए
समुन्दर किनारे पहुँचा
विशालकाय रेत की रियासत से
रुबरू हुआ.
अरसों तक पानी और सैलाबों से लड़ते झगड़ते
आखिर,
पत्थर महीन सी रेत बन गए थे.
उस रेत के समुन्दर को देख
जहन में ख़याल आया...
इंसान को भी वक़्त
इस रेत के समुन्दर सा लगता है,
कभी ख़त्म ही नही होगा
ऐसा हमेशा लगता है.
कोई वक़्त काटता है तो
कोई वक़्त गुज़ारता है,
रेत पर कोई दूर तक अकेला चलता है
या किस
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