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आख़िरी यादें

नरम फूलों सा नाजुक है, साया तेरा
इतना तो चांद भी, खूबसूरत नहीं हैं ।।
मै कब तक इल्तिज़ा, करता रहता तेरी
चांदनी को घटाओ से, फुरसत ही नहीं है।।
मेरे अपने ही सब बने बैठे है दुश्मन मेरे
गैरो से आदवत की, जरूरत ही नहीं है ।।
शहर भी बेवफा सा है, हवाए

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