
दर्द से अपना रिश्ता कुछ ऐसा बना है,
कि दर्द ही मुझे अपना लगने लगा है।
खुशी की खोज में बंजारों से भटकते,
जीवन के राहों पर हिचकोले खाते।
कुंकुम की सुगंध पर बढ़ते आगे,
बुनते खुशियों के अदृश्य धागे।
लड़खड़ाते पत्थरों से ठोकरें खाते,
गिरते-उठते फिर आगे बढ़ जाते।
हर रास्ते पर मिली एक कीलन,
उपहास सा फिर बना मेरा जीवन।
भावनाओं की क्षिति हिले क्षितिकंप खाते,Read More! Earn More! Learn More!