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चिरन्तर यात्रा

कुछ समय पूर्व, जब मैं और तुम, साथ-साथ चले थे,
हमारी हृदय ध्वनि कोमल संगीत-ताल में मिले थे।

कुछ स्मृति की सुगंध, अब भी हैं मेरे श्वाशों में,
मधुर स्वर की लय, गूँजती हैं अब भी कानों में।

तुम्हारी उँगलियों जब मेरे, करतल को छू जाती थी,
रोम-रोम में मेरे तब, संगीत तरंग उठ आती थी।

तुम्हें देखने को एकाएक, उठती थी सहमी पलकें,
पर घबड़ा कर गिर जाती थी, चार होते ही ~आँखें~ ।

कुछ कहने को, कँपकपाते अधरें मेरी खुलती थी,
मुरझाये फूल सी फिर, दोनों पँखुड़ियाँ बंधती थी।

मेरी निश्छल निःशब्द भावनाओं की बनी मूकदर्शिका,
झपकाती थी पलकें अबोध सी, बूझ मन की दशा।

शाम के सूरजमुखी भाँति, झुक जाते थे मेरे नयनपट,
तुम हल्के से मुस्का देती थी, मेरे अधीर अँतर्द्वंद पर।

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