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बचपन की यादेँ - सौरभ सुमन की कलम से



चंचल-चंचल कलकल-कलकल,

निर्मल-निर्मल कोमल-कोमल।

  बचपन के वो याद सुहाने,

  मनन करूं मैं शयन के बहाने।

मधुर स्मृति की कविता सी कहती,

निश्छल प्रेम की धारा बहती।

  शादी वह गुड्डे गुड़ियों की,

  किस्से वे राजा परियों की।

रोना बिलखना हठ वो करना,

रोते-रोते सहस हॅंस देना।

  यारों से भी खूब झगड़ता,

  सरपट पगडंडियों पे दौड़ता।

पेड़ की छाँव में छिप जाता,

या खेत के फसलों में खो जाता।

  कहाँ गया वह बचपन सलोना,

  जब मैं सबका था खिलौना।

चाचा की उॅंगली पकड़ टहल,

चाची के गाल को चूम मचल।

  दादी की गोदी में उछलता,

  दादा के आश्रय में रहता।

मामा, मौसी, नाना-नानी,

रोज सुनाए एक कहानी।

  दौड़ के बापू से जा

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