Os ki boondein's image

नन्ही नन्ही सी ओस की बूँदें,

छितरायी हुयी हरी हरी घास पर,

और उन पर पड़त हुयी सूरज की किरणें,

ऐसा लगता है जैसे छोटे छोटे मोती बिखरें हों.


मोती, जो की ढेर सारे हैं,

छोटे छोटे से जो मिल के बड़ेमोती बन जाते हैं,

अपना अस्तित्व भूल के दुसरे मोती में समां जाते हैं,

और इसमें साथ मिलता है उन्हें उस घास का,'[

जो की उन्हें ऐसे संभाले रहती है जैसे की उसके छोटे छोटे बच्चे हों,

एक को दुसरे से मिलाती है अपने ऊपर से गुज़ा कर,

और जब ये बच्चे बड़ेहो जाते हैं,

और संभाले नहीं जाते हैं,

तो धीरे से उन्हें मिटटी पर और पत्थरों पर उतार देती है.


यहाँ से शुरू होती है उस ओस की दूसरी जिंदगी,

कभी वो धरती के छिद्रों में समां जाती है,

कभी वो कुछ पत्तों को नहलाती है

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