सांझ's image

प्रखर होने लगी हिय उत्कंठा

आलोकित हुई सुप्त उमंग

तट पर लहरें खेले जैसे

मन में उठे वही तरंग

रोम-रोम हुआ स्पंदित

महक उठी तरुनाई

फिर सुहानी साँझ आई

उठी मचल स्मृतियाँ फिर से

बज उठे ह्रदय के तार-तार

ये प्रीत धुन छेड़ी किसने

सजीव हो उठे आसार

विस्तृत होने लगी

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