श्रम से चलती धुरी धरा की, जानत है हर कोय,
स्वेद बहता श्रम करने में, रंक कि राजा होय।
सुन रे, मति संसार की ऐसी फिरी है आज,
स्वेद दीन का श्रमजल क
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स्वेद बहता श्रम करने में, रंक कि राजा होय।
सुन रे, मति संसार की ऐसी फिरी है आज,
स्वेद दीन का श्रमजल क