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क्यूँ ना हम फिर से इश्क़ करें

ये तो तय है,

कि फ़ासले ज़रूरी हैं, 

कुछ दिन और।

तो क्यूँ ना हम फिर से,

इश्क़ करें?

गिले शिकवे भुला,

आ, फ़ासले रखकर इश्क़ करें!

इश्क़ की नज़दीकियों का,

जोखिम भी है शून्य इसमें।

रोज़, एक उड़ता चुम्बन,

मैं फेकू

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