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कहासुनी #३


ज़िंदगी!

माना कि तय हुआ था,

कि तू इम्तिहान लेगी।

पर ये क्या?

ना तारीख़ तय की,

ना समय,

आ गयी तू, लेने इम्तिहान।

ऊपर से प्रश्न पत्र भी ऐसा,

कि न पढ़ा हुआ काम आए,

न कमाया हुआ। 

इतना ज़ुल्म क्यों?

चाहती क्या है तू?

चालब

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