(१)
बंद हैं मयख़ाने,
ख़ाली हैं पैमाने,
कहाँ हो साक़ी।
दिन ये जुदाई के,
अब कटते नहीं।
ग़म-ए-जुदाई में,
मिट जाएगी हस्ती।
कहाँ हैं पैमाने,
कहाँ हो साक़ी।
आरज़ू है मेरी,
कुछ और खुले ना खुले,
जल्द से जल्द,
खुल जाएँ मयख़ाने।
(२)
रहने दे पैमाने
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