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कैसे जी रहा हूं मैं

रोज़ सुबह बुनता हूं रोज शाम उधड़ रहा हूं मैं ,
जिंदगी की उलझनों में दिन-ब-दिन उलझ रहा हूं मैं 

बुझाने गले की प्यास अपने ही आंसू गटक रहा हूं मैं ,
खोया मुसाफ़िर हूं सूरज के उजालों में भी भटक रहा हूं मैं 

Tag: samkitjain और1 अन्य
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