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अनेकों विरह- पीर के बाद भी, हे प्रियतम ! मैं चाहती हूँ , तुम्हारे प्रेम में राधा-सा होना..
इस सांसारिक प्रेम से परे,
हे प्रियतम !
मैं चाहती हूं
तुम्हारे प्रेम में
गोकुल की गोपियों-सा होना,
उनके
निष्काम प्रेम की ही तरह
मेरे प्रेम का भी
उतना ही पवित्र होना,
और
और मैं चाहती हूँ,
प्रेम का
उस चरम तक पहुँचना
जैसे
राधे-कृष्ण का दिव्य प्रेम,
जिससे जन्म लिया
प्रेम की परिभाषा ने
जिससे
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