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मानवता के डगर पे

प्यारे  तुम मुझे भी अपना लो ।
गुमराह हूं  कोई राह बता दो।
युं ना छोडो एकाकी अभिमन्यु सा रण पे।
मुझे भी साथले चलो मानवताकी डगर पे।।
वहां बडे सतवादी है।
सत्य -अहिंसाकेपुजारी हैं।।
वे रावण के  अत्याचार को  मिटा देते हैं।
हो गर हाहाकार तो सिमटा देते है।।
इस पथ मे कोई जंजीर नही
                   जो बांधकर जकड सके।
पथ मे कोई विध्न नही
                      जो रोककर अ क ड सके।।
है ऐ मानवता
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