जड़ें अपनी ही हिलाएंगे, कहाँ जायेंगे
पत्ते ही शाख़ को खाएंगे, कहाँ जायेंगे
मुल्क़ बनता ही रहा है सदा बनते-बनते
तोड़ के इसको बनाएंगे, कहाँ जायेंगे
रहनुमा वो हैं जिन्हें इश्क़ है अंधेरों से
हमें सूरज वो दिखाएंगे, कहाँ जायेंगे
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