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मुझे घर से निकलना था

मुझे घर से निकलना था
मैं निकला भी
कुछ और थे जो मेरी तरह निकले
अभी तक मैं बस आदमी था
अचानक, सब बदल गया
मैं दो हुआ फिर चार
फिर हो गए सब हज़ार

सिलसिला थमा नहीं
कोई रुका नहीं
मैं भूल गया मुझे कहाँ जाना था
सब भूल गए किसे क्या लाना था

दूर आती एक अलग किस्म के लोग दिखे
इतना भी नहीं कि
देश के नागरिक न लगें
खाकी वर्दी, हांथों में डंडे, बंदूकें
साथ ही मजबूत काँधें पर
130 करोड़ जनता का बोझ

भीड़ और बड़ी हो गयी
सब का रंग हरा और भगवा होने लगा
कहीं जय श्री राम, कहीं अल्लाह ओ अकबर
कहीं भारत माता की जय, कहीं आज़ादी , आज़ादी

अचानक एक पत्थर
सायं से मेरे सर पे आकर लगी
मैंने पत्थर को देखा
सब ने पथराव को देखा

दीये शोलों में बदल ग
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