यह वक्त कुछ अजीब है,
कोई सपने नहीं करीब है,
खामोश है यह शमा,
एक प्रश्न है जुबान पे आज,
बुझते हुए चिराग में,
रोशनी है धीमा धीमा,
कैसा यह नसीब है,
यह वक्त कुछ अजीब है,
जो अपना ना हो सका,
वो सपना भी अब खो चुका,
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यह वक्त कुछ अजीब है,
कोई सपने नहीं करीब है,
खामोश है यह शमा,
एक प्रश्न है जुबान पे आज,
बुझते हुए चिराग में,
रोशनी है धीमा धीमा,
कैसा यह नसीब है,
यह वक्त कुछ अजीब है,
जो अपना ना हो सका,
वो सपना भी अब खो चुका,