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सपनों का खंडहर

सपनों के खंडहर में भटकता हूं दिन रात

इन मलबों में दबे हुए हैं मेरे टूटे वजूद के राज

चारों पहर मेरे मन को चैन नहीं मेरा संताप

सपनों के इन खंडहरों में मेरे दबे हैं जज्बात ।

ख्वाबों का जो गुलदस्ता सजाया था जीवन में

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