सोशल मीडिया के दौर में झूठ को सच
सच को झूठ बना दिया जाता है,
प्रचार के इस माध्यम को टी आर पी
का साधन मान लिया जाता है,
गुमराह करने वाले तथ्यों को जोर शोर
से जनता के बीच दिखाया जाता है
हकीकत से दूर एक भ्रमजाल बुना
जाता है,
अवाम को रोज नए नए विवादों में
उलझाया जाता है ।
मीडिया चैनलों पर क्या कोई नैतिक
जिम्मेदारी या संवैधानिक मानक का
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