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मेरी नादानियां

अपनी नादानियों का बोझ उठाता रहा हरदम

जिसे मैंने अपना फर्ज समझा

उसे जमाना मानता रहा मूर्खता का कदम,

क्या करूं औरों से क्यों गिला करूं,

जब खुद को झोंक दिया कर्ज का फर्ज

निभाने में,

मु

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