
मंदिर की मूरत में हमें भगवान सदा ही दिखता है
इंसानों के अंदर इंसान नहीं क्यों दिखता है,
कहते हैं इस सृष्टि के कण कण में ईश्वर बास है
फिर इंसानी फितरत में छल कपट क्यों मिलता है ।
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