खामोशी ही मेरी नियति है अब,
अपने अल्फ़ाज निकलते नहीं अब,
खुद से खुद में खोये रहता हूँ,
किसी से कुछ भी नहीं कहता हूँ,
बस मेरी लेखनी ही कुछ कहती है,
दिल की दास्ताँ व्यक्त करती है,
मेरी लेखनी ही हमराह
हमसफर मेरी,
इसी के साथ दोस्ती है मेरी,
मेरी खामोशी में रंग भरती है,
मेरे दिल के अल्फ़ाज
व्यक्त करती है ।
अब तो खामोशी ही राजदार है,
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