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जिन्दगी के रुप अनेक

जिन्दगी ऐ जिन्दगी तुझे

इन्सान कहां समझ पाया,

हर बढते हुए कदम पर,

तेरा एक नया रुप पाया,

कभी पल भर की चंद खुशियाँ मिली,

तो कभी गम का लम्बा साया,

एक अन्जाना सफर है तेरा,

जिसमें इन्सान उलझता आया ।

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