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बाजार का संसार

अब तो बाजार में सब कुछ बिकता है,

जमीर बिकता है शरीर बिकता है

बिक जाती है सरेआम इंसानियत सारी

बिक जाना है आज इंसान की लाचारी,

दौलत भी चाहिए रसूख भी चाहिए

गुमनाम जिंदगी को पहचान चाहिए,

इन ख्वाहिशों को हकीकत की उड़

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