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बिना बैट्री का रेडियो

मुरली चाचा और रेडियो


बहुत दिनों बाद आज मुरली चाचा से मिला , दशहरा का नवमी का दिन था और त्योहार की खुशियाँ को मैं मुरली चाचा के साथ बिताना चाहता था ।


मुरली चाचा से मिलते ही मुरली चाचा ने मुझे सन 1965 का रेडियो दिखाते हुए कहा कि बेटा जल्दी पहले तुम मेरे लिए 4 बैटरी ले आओ । 

मैं तनिक भी हैरान नही था मुझे पता था कि मुरली चाचा को रेडियो बहुत ही जाएदा पसंद है और रेडियो के बिना मुरली चाचा का जीवन बहुत ही सादा है ।


मुरली चाचा से मैं आज तकरीबन 8 महीने बाद मिल रहा था , मुरली चाचा का व्यग्तिगत भारत का चेहरा है यानी गंगा जमुनी तहजीब ।मुरली चाचा के हर शब्द में एकता और मोहब्बतों की बारिश होती है । मैं बचपन से मुरली चाचा के हर वो शब्द का अनुशरण करते आ रहा हूँ जिससे मुझे सुकून मिलती है ।

आज तकरीबन 10 साल हो गए उस मनहूस दिन को बीते हुए जब मुरली चाचा ने एक दुर्घटना में अपने दोनों आंख गवां बैठे थे तब से लेकर आज तक रेडियो ही इनका सहारा बचा था ।


मुरली चाचा के 3 बेटे है तीनो अपने अपने काम से बाहर रहते है , दशहरा जैसे पर्व में भी तीनो नही आये । मंझला और छोटा बेटा अपनी पत्नियों के साथ ही बाहर रहता है और बड़ा बेटा समझदार निकला अपनी पत्नी और बच्चो को पिता के साथ ही छोड़ कर कमाने निकल पड़ा ।

ऐसा नही की मुरली चाचा कमाने में पीछे थे , अपने क्षेत्र के सबसे तगड़े और दिमागदार इंजिन मिस्त्री कहलाते थे । बड़ी बड़ी गाड़ियों के मालिक मुरली चाचा को घर से ही उठा के ले जाते थे जब

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