डूब जाना हैं तुम्हारी इन शरबती आँखों में,क्यूंकि
अक्सर नज़र लग जाती हैं ख़ूबसूरत चीज़ो को हमसे
तारीफ़ करू भी तो कैसे करू तुम्हारी ऐ हुश्न ए मिल्कीयत
तारीफ़ तुम्हारी करू तो तारीफ़ रुस्वा हो जाएं हमसे
एक अदद शुक्रिया करना हैं उस रब को भी
जो उसने अपना नूर मुझे दे दिया
रुस्वा हो भी जाएं वो किस्मत से मेरे तो क्या,फिर
उसने अपने जन्नत का हूर मुझे जो दे दिया
ये दि
अक्सर नज़र लग जाती हैं ख़ूबसूरत चीज़ो को हमसे
तारीफ़ करू भी तो कैसे करू तुम्हारी ऐ हुश्न ए मिल्कीयत
तारीफ़ तुम्हारी करू तो तारीफ़ रुस्वा हो जाएं हमसे
एक अदद शुक्रिया करना हैं उस रब को भी
जो उसने अपना नूर मुझे दे दिया
रुस्वा हो भी जाएं वो किस्मत से मेरे तो क्या,फिर
उसने अपने जन्नत का हूर मुझे जो दे दिया
ये दि
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