
प्यार से मेरे पास आ कर
एक दिन मेरी बीवी
बोली- "हे पति परमेश्वर !
मुझको ला दो एक टीवी ।"
मैंने मना किया तो बोली-
"मायके चली जाउंगी,
जब तक इस घर में टीवी नहीं आएगा,
मैं भी नहीं आउंगी ।"
जब उसने चार दिन तक खाना नहीं खाया
तो मैं ही हार कर एक टीवी ले आया ।
और उसी दिन से मेरी किस्मत सो गयी है,
अब मेरी बीवी-
नव्या, आनंदी और गुंजन में,
इच्छा और तपस्या की उतरन में,
कहीं खो गयी है ।
आज टीवी ही उसके लिए सबसे ख़ास हो गया है,
मेरे घर के काम काज का सत्यानाश हो गया है ।
मैं थका हारा काम से जब घर आता हूँ,
तो उसे मिसेज कौशिक की पाँच बहुओं के साथ
बिजी पता हूँ,
जो मेरा किसी पराई नार की तरफ
देखना भी नहीं सहती है,
जाने कैसे वो
कभी सौतन कभी सहेली में मस्त रहती है,
और उस वक़्त तो वो हद पार करती है,
जब शनिवार इतवार की रात को,
ए सी पी अर्जुन का इंतजार करती है ।
इंतजार अर्जुन का,
और मुझसे कहती है- साथ निभाना साथिया,
पर ये साथिया उसे
दलजीत और रणवीर से न्यारा नहीं लगता,
पता नहीं क्यों उसे
अपने पिया का घर प्यारा नहीं लगता,
सास बिना ससुराल
नाम रखा है उसने मेरे घर का,
उसे तो भाता है ससुराल सिमर का,
उसे ही कहती है ससुराल गेंदा फूल,
मुझको गयी है भूल ।
कभी उसे समझाता हूँ,
अपना पवित्र रिश्ता याद दिलाता हूँ,
पर उसे समझ नहीं आता है
कि ये रिश्ता क्या कहलाता है,
वो लापरवाही से मुस्कुराती है,
और फिर से रिमोट उठा कर,
अपने सपनों में खो जाती है,
उसके- सपने सुहाने लड़कपन के,
वो खेल उसके बचपन के,
याद करती रहती है अकेली,
यहाँ मैं घर घर खेली ।
वो बच्चों को साथ बिठा कर
एफ आई आर, सी आई डी और
क्राइम पैट्रॉल दिखाती है,
कुणाल और सिद्धि से
उनका परिचय कराती है,
उसकी परवरिश से बच्चे बिगड़ने लगे हैं,
फीयर फाइल्स और शैतान
देख कर डरने लगे हैं ।
" बाबा ऐसो वर ढूंढो "
मुझसे मेरी बिटिया कहती है,
जो वीर और राठौर के ख्यालों में
खोई रहती है ।
बेटे को भी कहाँ पीछे रहना है,
मैं समझाता हूँ कि-
एक हज़ारों में तेरी बहना है,
पर ये उसे याद नहीं रहता है,
वो अपनी अपनी बड़ी बहन को
हिटलर दीदी कहता है ।
हर सीरियल के किरदार उन्हें सच्चे लगते हैं,
मेरी बीवी को उसके गुमराह बच्चे
बड़े अच्छे लगते हैं ।
हर किसी पर टीवी का अस
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