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राब्ता ख़ुद से

तवज्जो देते देते थकने लगे हैं

क़दम कोशिशों के अब सिमटने लगे हैं


बंदिशों की बैड़ीयों को तोड़ने लगें हैं

कदमों के हौसले अब दौड़ने लगें है


दूजों की नज़रों में

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