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क़िस्मत का दस्तूर है

खैरियत अब कोई किसी की पूछता कहाँ

अब तो बस मतलबों के दुआ सलाम हैं

मोहब्बतों का अब ठिकाना कहाँ

अब तो सब नफरतों के गुलाम हैं


फ़िक्र अब किसी को किसी की कहाँ

अब तो बस तकल्लुफ़ के आवाम हैं

नज़दीकियों की अब क

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