हाल देखकर इंसानों का
शेर पिंजरे में इतराता है
आज़ाद होते हुए भी
आदम क़ैदी नज़र आता है
हूं मैं मज़बूर ये तो
समझ आता है
हुआ क्या है इसको
जो ख़ुद की ही बंदिशों में
जकड
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हाल देखकर इंसानों का
शेर पिंजरे में इतराता है
आज़ाद होते हुए भी
आदम क़ैदी नज़र आता है
हूं मैं मज़बूर ये तो
समझ आता है
हुआ क्या है इसको
जो ख़ुद की ही बंदिशों में
जकड