पाया ही नहीं जिसे
उसे क्यों खोने से डरते हैं
अपनी ही दिल की गवाही से
क्यों हम अक्सर मुकरते हैं
ख़ुद को बेवजह क्यों
हम हरपल यूं ही परखते हैं
अनचाह
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पाया ही नहीं जिसे
उसे क्यों खोने से डरते हैं
अपनी ही दिल की गवाही से
क्यों हम अक्सर मुकरते हैं
ख़ुद को बेवजह क्यों
हम हरपल यूं ही परखते हैं
अनचाह