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लाहासिल हसरतें

लाहासिल हसरतों का

बोझ उठाए है

दिल है की हरपल

अपनी टांग अड़ाए है


सुने है न किसी की

न किसी को बताए है

राज़ जाने कितने

इसने भीतर समाएं है


लबों पर इसने अपने

ताले लगाए हैं

पूछे

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