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कोई मज़बूरी तो नहीं

सच्चा हर एक इल्ज़ाम हो 

ये ज़रूरी तो नहीं

अनचाहे रिश्तों को निभाना

कोई मज़बूरी तो नहीं


जज़्बात हर दफा बदनाम हो

ये ज़रूरी तो नहीं

एहसास हर किसी के गुलाम हो&n

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