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पकवानों की थाल में
मैं ही रंग जमाती हूं
हो कोई भी उम्र
सबके मन को लुभाती हूं
ज़ुबान के मिजाज़ पर
शीरी का वरक़ चढ़ाती हूं
बेरंग से जज़्बातों को
केसरिया कर जाती हूं
टे
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पकवानों की थाल में
मैं ही रंग जमाती हूं
हो कोई भी उम्र
सबके मन को लुभाती हूं
ज़ुबान के मिजाज़ पर
शीरी का वरक़ चढ़ाती हूं
बेरंग से जज़्बातों को
केसरिया कर जाती हूं
टे