आज में रहकर
कल की क्यों सोचना
धर कर हाथ पर हाथ
मुकद्दर को क्यों कोसना
औरों को देख
ख़ुद को क्यों आँकना
अपनों क
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आज में रहकर
कल की क्यों सोचना
धर कर हाथ पर हाथ
मुकद्दर को क्यों कोसना
औरों को देख
ख़ुद को क्यों आँकना
अपनों क