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दोहरा दर्द



दर्द में हूँ अपमानित भी हूँ 
इक तरफ़ दर्द मेरे रजोधर्म का 
दूसरी तरफ़ दर्द मेरे अपमान का
मैं स्त्री हूँ या हूँ इक अपमानित दर्द? 

 हाँ ये उन्हीं दिनों की बात हैं
मैं डूब रही थी लाल 'समंदर' में
मेरी चींख गूंज रही थी नील 'अम्बर' में
दर्द से कहराती रही रोती रही  ' दोहरा दर्द'
अपमान का बोझ अपने तन, मन पर ढोती रही

"इक तरफ़ दर्द मेरे रजोधर्म का
दूसरी तरफ़ दर्द मेरे अपमान का"

जब थी ज़रूरत सहारे की 
मिली रोकटोक जमाने की 
बदल रहा संसार हमारा
क्यों न बदलती सोच हमारी
मैं दर्द में हूँ ' अपमानित भी 

मैं अशुद्ध नहीं 
मैं अपवित
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