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मिट्टी के दिये [ Mitti Ke Diye ]

उज्जवल हर आँगन को करते हैं,

जगमग करके मन को मोह लेते है।

पूजा की थाली में सज धज कर

स्वागत श्रीं लक्ष्मी जी का करते हैं।

 

यह जो अग्नि देवता से दिखते है,

नुककड पर मिटटी के दामों मिलते है। 

लेकिन बिना मोल भाव के

फिर भी नही बिकते है।

जो पावन मिट्टी से इन्हें बनाते है,  

प्रेम और स्नेह के रंग मिलाते है ।

उमंग, उत्साह जीवन में हमारे लाते है,

हर घर आँगन को रोशन करते है।

लेकिन क्या यह मिट्टी के दिये,

इन्हें बनाने वालों के

जीवन को भी रोशन करते है?

मोल भाव से पहले एक बार इतना तो सोचें,

कि मिट्टी के दिये से कैसे घर चलते है?

 

हम क्यों मोलभाव में उलझे है?

यह क्या बीमारी है? ऐसी क्या लाचारी है?

किसी और की व्यथा हम क्यों नहीं समझते है ?

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