माँ  [ Maa ]'s image

माँ   ( राकेश की कलम से ) 

 

माँ …मुझ को बचपन की याद दिलाती

धुंधली छवि जैसे कोई उज्ज्वल हो जाती  

सफ़ेद क़मीज़ से सब्ज़ी के दाग मिटाती

होम वर्क मुझ को रोज पूरा करवाती  

मेरी कापी पर ख़ाकी कवर चढ़ाती    

गणित में कम अंक देख कर चौंक जाती

 

लंचबॉक्स में ढेर सारा प्यार पैक कर देती  

चुपके से कुछ पैसे भी साथ रोज रख देती  

स्कूल बस ना जाए छूट हर सुबह ये फ़िक्र होती  

मेरे साथ भागती जब थोड़ी सी देरी होती  

 

कभी झुँझलाती तो कभी मुस्कुराती

माँ ….मुझ को बचपन की याद दिलाती

 

मुझको क्या चाहिए मेरे चेहरे से पढ़ लेती

मेरे बिना कुछ कहे ही सब कुछ जान लेती 

मुझे सोता देख कर मन ही मन मुस्कुराती

मेरा सर सहलाते सहलाते खुद सो जाती

 

काश मैं फिर से बच्चा हो सकता

माँ की गोद में सर रख कर सो सकता

माँ की कही हर बात को मानता

उसकी आँखों से खरे खोटे को पहचानता

 

जिसने मुझको सब बतलाया

गर्व से दुनिया में जीना सिखलाया

अब मैं उसको राह दिखलाता हूँ

जो सब जानती है उसको सिखलाता हूँ

 

काश मैं फिर से बच्चा हो सकता

माँ कीं गोद में सर रख कर सो सकता

 

कभी कोई कहानी सुनकर भावुक होता

कभी किसी लोरी का सुर कानों में होता

ना कोई फ़िक्र ना भय किसी बात का होता

हर ज़िद, हर इच्छा, हर सपना पूरा होता । 


काश दौर फिर से नासमझी का होता 

समझदारी का सर पर बोझ ना होता

जो चाहता वो बेझिझक मैं कर लेता  

रिश्ते नातों  में ऊंच नीच का भेद ना होता

मन गंगा के जैसा निश्छल पावन होता  

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