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क्षितिज [ KSHITIJ ]

क्षितिज आग़ोश मे अपनी छुपा लेता 

सूरज को हर साँझ,

लालिमा की गरिमा को बचाने के लिए 

सवेरा बनकर फिर लौट आते है दिनकर 

वसुंधरा पर तमस को मिटाने के लिए


जो नज़र को ढलता हुआ दिखता है, वो

क्षितिज के पार उदित होता दिखता है 

यही तो नियम हैं दरअसल सृष्टि का 

जो एक ओर अंत के जैसा दिखता है

दूसरी ओर नई उम्मीद लेकर उगता है 


क्षितिज अद्भुत है , अदृश्य है, अनन्त है 

आग़ाज़ और अन्त तो मन के अंदर है 

कौन जान पाया गहरा कितना समंदर है&nb

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