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चाँद को क्या मालूम [ Chand ko Kya Maloom ]

रजनी के आँचल से निकलता चाँद

ज्योति का दर्पण, सपनो का आलाप। 

नील गगन में नित चमके बेबाक,

निर्मल प्रेम की निश्छल सौगात। 


आसमां का दुलार पाकर,

सितारों का हार पहने।

श्वेत आभूषणों से सजकर,

चाँदनी की चादर ओढ़े।


चन्दन की महक से लिपटकर,

नशीली सी किरणें मन में बसी है।

प्यार की परी,हर धड़कन में,

हर निगाह में जैसे चांदनी बसी है।


तुम्हारी आभा में नहाई धरती

सरिता की लहरों में चमके तुम्हारी छवि। 

हर मन में बसी है तुम्हारी महक

प्रेम के गीतों में गूंजे तुम्हारी ध्वनि।  


कथा कहानियों के तुम नायक

कवियों की कलम के अधिनायक। 

प्रेमियों की पत्रों में छिपे हो तुम

रात्रि का मधुर संगीत जैसे छम छम


तुम रहस्यमयी, तुम आकर्षक

तुम्हारी शा

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