नारी पच्चीसा
नारी! देवी तुल्य हो, सर्जक पालक काल ।
ब्रह्माणी लक्ष्मी उमा, देवों की भी भाल ।।
देवों की भी भाल, सनातन से है माना ।
विविध रूप में आज, शक्ति हमने पहचाना ।।
सैन्य, प्रशासन, खेल, सभी क्षेत्रों में भारी ।
राजनीति में दक्ष, उद्यमी भी है नारी ।।1।।
नारी का पुरुषार्थ तो, नर का है अभिमान ।
नारी करती आज है, कारज पुरुष समान ।।
कारज पुरुष समान, अकेली वह कर लेती ।
पौरुष बुद्धि विवेक, सफलता सब में देती ।।
अनुभव करे “रमेश“, नहीं कोई बेचारी ।
दिखती हर क्षेत्र, पुरुष से आगे नारी ।।2।।
नारी जीवन दायिनी, माँ ममता का रूप ।
इसी रूप में पूजते, सकल जगत अरु भूप ।
सकल जगत अरु भूप, सभी कारज कर सकते ।
माँ ममता मातृत्व, नहीं कोई भर सकते ।।
सुन लो कहे “रमेश“, जगत माँ पर बलिहारी ।
अमर होत नारीत्व, कहाती माँ जब नारी ।।3।।
नारी से परिवार है, नारी से संसार ।
नारी भार्या रूप में, रचती है परिवार ।।
रचती है परिवार, चहेती पति का बनकर ।
ससुर ननद अरु सास, सभी नातों से छनकर ।।
तप करके तो आग, बने कुंदन गरहारी ।
माँ बनकर संसार, वंदिता है वह नारी ।।4।।
नारी तू वरदायिनी, सकल शक्ति का रूप ।
तू चाहे तो रंक कर, तू चाहे तो भूप ।।
तू चाहे तो भूप, प्रेम सावन बरसा के ।
चाहे कर दें रंक, रूप छल में झुलसा के ।।
चाहे गढ़ परिवार, सास की बहू दुलारी ।चा
हे सदन उजाड़, आज की शिक्षित नारी ।।5।।
नारी करती काज सब, जो पुरुषों का काम ।
अपने बुद्धि विवेक से, करती है वह नाम ।।
करती है वह नाम, विश्व में भी बढ़-चढ़कर
पर कुछ नारी आज, मध्य में है बस फँसकर ।।
भूल काज नारीत्व, मात्र हैं इच्छाचारी ।
तोड़ रही परिवार, अर्ध शिक्षित कुछ नारी ।।6।।
नारी शिक्षा चाहिए, हर शिक्षा के साथ ।
नारी ही परिवार को, करती सदा सनाथ ।।
करती सदा सनाथ, पतोहू घर की बनकर ।
गढ़ती है परिवार, प्रेम मधुरस में सनकर ।।
पति का संबल पत्नि, बुरे क्षण में भी प्यारी ।
एक लक्ष्य परिवार, मानती है सद नारी ।।7।।
नारी यदि नारी नहीं, सब क्षमता है व्यर्थ ।
नारी में नारीत्व का, हो पहले सामर्थ्य ।।
हो पहले सामर्थ्य, सास से मिलकर रहने ।
एक रहे परिवार, हेतु इसके दुख सहने ।।
नर भी तो कर लेत, यहाँ सब दुनियादारी ।
किन्तु नार के काज, मात्र कर सकती नारी ।।8।।
नारी ही तो सास है, नारी ही तो बहू ।
कुंती जैसे सास बन, पांचाली सम बहू ।।
पांचाली सम बहू, साथ दुख-सुख में रहती ।
साधे निज परिवार, साथ पति के सब सहती ।।
सहज बने हर सास, बहू की भी हो प्यारी ।
सच्चा यह सामर्थ्य, बात समझे हर नारी ।।9।।
नारी आत्म निर्भर हो, होवे सुदृढ़ समाज ।
पर हो निज नारीत्व पर, हर नारी को नाज ।।
हर नारी को नाज, होय नारी होने पर।
ऊँचा समझे भाल, प्रेम ममता बोने पर ।।
रखे मान सम्मान, बने अनुशीलन कारी ।
घर बाहर का काम, आज करके हर नारी ।।10।।
नारी अब क्यों बन रही, केवल पुरुष समान ।
नारी के रूढ़ काम को, करते पुरुष सुजान ।।
करते पुरुष सुजान, पाकशाला में चौका ।
फिर भी होय न पार, जगत में जीवन नौका ।।
नारी खेवनहार, पुरुष का जग मझधारी ।
समझें आज महत्व, सभी वैचारिक नारी ।।11।।
नारी है माँ रूप में, जीवन के आरंभ ।
माँ की ममता पाल्य है, हर जीवन का दंभ ।।
हर जीवन का दंभ, प्रीत बहना की होती ।
पत्नि पतोहू प्यार, सृष्टि जग जीवन बोती ।
सहिष्णुता का सूत्र, मंत्र केवल उपकारी
जीवन का आधार, जगत में केवल नारी ।।12।।
नारी का नारीत्व ही, माँ ममता मातृत्व ।
नारी का नारीत्व बिन, शेष कहाँ अस्तित्व ।