![दोहे: राष्ट्र धर्म's image](/images/post_og.png)
राष्ट्रद्रोह के ज्वर से, दहक रहा है देश ।
सुख खोजे निज धर्म में, राष्ट्र धर्म में क्लेश ।।
अभिव्यक्ति के नाम पर, राष्ट्रद्रोह क्यों मान्य ।
सहिष्णुता छल सा लगे, मौन रहे गणमान्य ।।
तुला धर्मनिरपेक्ष का, भेद करे ना धर्म ।
अ, ब, स, द केवल वर्ण है, शब्द भाव का कर्म ।।
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