आ लौट चलें,
चकाचौंध से, दृश्य प्रकाश पर
शोर-गुल से, श्रव्य ध्वनि पर
सपनों की निद्रा से, भोर उजास पर
आखिर शाखाओं का अस्तित्व मूल से तो ही है ।
आ लौट चलें
गगन की ऊँचाई से, धरा धरातल पर
सागर की गहराई से, अवलंब भू तट पर
शून्य तम अंधियारे से, टिमटिमाते लौ के हद पर
आखिर मन के पर को भी थाह चाहिए यथार्थ का ।।
आ लौट चलें
दूसरों के कंधों से, अपने पैरों पर
रील लाइफ से, रीयल लाइफ पर
आखिर कभी न कभी
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