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कवि और कविता

कविता रिसती है हृदय से  ,

और खामोशी से कंठ में आती है,

खाट लगाकर कुछ देर वही ठहर जाती है। 

कविता रिसती है हृदय से  ,

और कांपते हाथों में आती है ,

साहस से हीन होकर वहीं खो जाती है ।

कविता नृत्य करती है मौन में ,

शोर में सहम जाती है ,

एकान्त कक्ष के कोने में ,

स्वयं को स्वतंत्र पाती है।

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