
तेरे आगोश में ठहरूँ तो फिर सवँर जाऊँ ,
इसी एहसास की शिद्दत से न मर जाऊँ ।
इस राह की वीरानियाँ संगदिल सी हैं ,
जी बहुत करता है अपने घर जाऊँ ।
क्या गलत है मैं अगर इल्ज़ाम हूँ ,
कम से कम इक बार तेरे सर जाऊँ ।
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तेरे आगोश में ठहरूँ तो फिर सवँर जाऊँ ,
इसी एहसास की शिद्दत से न मर जाऊँ ।
इस राह की वीरानियाँ संगदिल सी हैं ,
जी बहुत करता है अपने घर जाऊँ ।
क्या गलत है मैं अगर इल्ज़ाम हूँ ,
कम से कम इक बार तेरे सर जाऊँ ।