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स्पष्टीकरण

क्यों दूँ मैं स्पष्टीकरण 
मैं समग्र हूँ, पूर्ण हूँ, मुखर हूँ
मेरा शोषण करके 
क्या समझा है तुमने
तुम विजयी हो।

ओ पुरूष....
तुम्हारी मानसिकता 
इतनी विकृत हो गई है
क्या तुम्हें किंचित भी आभास है
तुम कितने भयभीत हो
तुमने इतिहास को पढ़ा तो
पर शायद तुम्हें यह भान नहीं।

तुमने उस नायिका का 
प्रेम तो देखा
रोम रोम जो तुममें
रंग कर तुम्हें
रति-कामिनी सा सुख देती है।

कभी उस वीरांगना को भी देखो
जो रण में रणचंडी सा
तांडव भी रच जाती हैं।
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