
"तुम, मैं और वो कुल्हड़ वाली चाय"
उस शाम को हम फिर से वहीं उसी चाय की टपरी पर बैठे,
सामने उसी खूबसूरत झील को निहारते, हाथों में चाय का कुल्हड़ लिए,
तुमने तो कह दिया था मुझसे कि हमारी राह एक नहीं अब,
मैं तुम्हें, फिर झील की उन लहरों को देखती बस सुने जा रही थी जो भी तुम कह रहे
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