
सोचती हूँ,
बीते यूँ ही जिंदगी के कुछ पल,
जैसे आने वाला हो कोई सुनहरा कल।
कैसे कहूँ किस 'काश' को लिए बैठी हूँ हृदय तल में अपने,
जिसकी उम्मीद पर देखे थे भविष्य के सपने।
ये मोड़ कैसा है?
कैसी है ये
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सोचती हूँ,
बीते यूँ ही जिंदगी के कुछ पल,
जैसे आने वाला हो कोई सुनहरा कल।
कैसे कहूँ किस 'काश' को लिए बैठी हूँ हृदय तल में अपने,
जिसकी उम्मीद पर देखे थे भविष्य के सपने।
ये मोड़ कैसा है?
कैसी है ये